बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 संस्कृत बीए सेमेस्टर-1 संस्कृतसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 संस्कृत
प्रश्न- क्या आप इस तथ्य से सहमत हैं कि माघ में उपमा का सौन्दर्य, अर्थगौरव का वैशिष्ट्य तथा पदलालित्य का चमत्कार विद्यमान है?
उत्तर-
महाकवि माघ
महाकवि माघ संस्कृत महाकाव्यकारों में अत्यधिक प्रतिष्ठित हैं। महाकवि माघ के पिता का नाम दत्तक सर्वाश्रय था और उनके पितामह सुप्रभदेव वर्मलात नामक राजा के मन्त्री थे। वसन्तगढ़ से 625 ई0 का एक शिलालेख प्राप्त हुआ है जिसमे वर्मलात का उल्लेख हुआ है।
महाकवि माघ की एकमात्र कृति 'शिशुपालवध' संस्कृत महाकाव्य है। इसमें 20 सर्ग है। महाकवि माघ संस्कृत महाकाव्य परम्परा में अपना अद्वितीय स्थान रखते हैं। भारवि ने जिस अलंकृत काव्यशैली का श्रीगणेश किया था, माघ द्वारा उसका पूर्ण विकास हुआ है। यद्यपि माघ असाधारण मेधावी तथा अक्षुण्ण कवित्व शक्तिसम्पन्न थे परन्तु अलंकरण एवं चमत्कार के मोह में फँसकर वे अपने कवि हृदय को खो बैठते हैं। इसलिए उनके काव्य में भावुकता के स्थान पर बुद्धिचातुर्य, चमत्कार एवं कृत्रिमता के दर्शन होते हैं।
पुरातन कवियों में से माघ की उत्कृष्टता को प्रतिपादित करते हुए पण्डितों ने इस उक्ति को प्रस्तुत किया है - कालिदास में उपमा का सौन्दर्य है, भारवि में अर्थगौरव का वैशिष्ट्य तथा दण्डी में पदलालित्य का चमत्कार है, परन्तु माघ में उक्त तीनों गुण पाये जाते हैं -
"उपमा कालिदासस्य भारवेरर्थगौरवम्।
दण्डिनः पदलालित्यं माघे सन्ति भयो गुणाः॥'
महाकवि माघ पदलालित्य के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने शिशुपालवध में सुललित तथा मनोहर पदों की सुन्दर योजना की है। उदाहरण के लिए निम्नलिखित पद्य को देखे -
नवपलाशपलाशवन पुरः,
स्फुटपरागपरागत पङ्कजम्।
मृदुलतान्त लतान्तमलोकयतु.
स सुरभिं सुरभिं सुमनो भरैः॥
महाकवि माघ श्रृंगार, वीर, हास्य आदि रसों की व्यञ्जना में पूर्ण सफल हुए हैं। उदाहरण के लिए श्रृंगार रसपरक एक श्लोक देखें-
"विलसितमनुकुर्वती पुरस्ताद्धरणिरुहाधिरुहो वधुर्लतायाः।
रमणमृजुतया पुरः सखीनामकलित चापलदोषमालिलिङ्ग॥'
महाकवि माघ की भाषा साहित्यिक सरसता के साथ ही साथ प्रकृष्ट पाण्डित्य से पूर्ण है। उन्होंने प्रायः नये से नये शब्दों का प्रयोग किया है। अतएव उनके विषय में प्रसिद्ध है -
"नवसर्गगते माघे नवशब्दों विद्यते।'
भाषा में प्रौढता या सरसता प्रसङ्गानुकूल पायी जाती है।
महाकवि माघ ने चित्रालकारों का प्रयोग किया है। उदाहरण के लिए निम्नलिखित पद्य को देखें -
राजराजीरुरोजाजे राजिरेऽजोऽजरोडरजाः।
रेजारिजूरजोर्जार्जी रराजर्जुरजर्जुरः॥
महाकवि माघ व्याकरणशास्त्र, अलकारशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, नाट्यशास्त्र, संगीतशास्त्र आदि के उद्भट विद्वान हैं। उनकी विद्वता से प्रभावित होकर राजशेखर लिखते हैं-
कृत्स्नप्रबोधकृद्वाणी भारवेरिक्भारवेः।
माधेनेव च माधेन कम्पः कस्य न जायते॥
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